लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (30) अधजल गगरी छलकत जाए ( मुहावरों की दुनिया )
शीर्षक = अधजल गगरी, छलकत जाए
मानव ने अपने दादा और पापा के साथ बाकी बची हुयी जगह भी घूम लीं थी गांव में, अब कुछ कुछ दीन दयाल जी और आशीष के बीच भी नाराज़गी ख़त्म सी हो रही थी, आखिर कार बाप बैठे थे, कोई आपसी दुश्मन नही थे, कभी कभी चढ़ती जवानी में ऐसा हो जाता है, कि बेटे को बाप की नसीहत में डांट नज़र आये, लेकिन जब अक्ल आती है तब सब समझ आ जाता है
और अब शायद दोनों बाप बेटे भी इस बात को समझ गए थे, लेकिन फिर भी कही न कही ज्यादा बाते करने से हिचकीचाते थे।
उन्हें इस तरह नजदीक आता देख सुष्मा जी भी खुश थी, अब उन्हें यकीन होने लगा था की जल्द ही जल्द या बा देर बाप बैठे के रिश्ते के बीच पड़ी खटास जल्द ख़त्म हो जाएगी
आज दोपहर में सुष्मा जी और राधिका ने बहुत ही मजेदार खाने बनाये थे, दोनों ने सबकी पसंद की सब्जियाँ बनायीं थी, जिसे खाने के बाद सबको बेहद मजा आया
और इस बात पर अफ़सोस भी था की शहर में उन्हें इस तरह का खाना नही मिल पायेगा,
मानव के पास अब बस दो ही मुहावरें बचे थे, जिनमे से वो एक का ज़िक्र वही खाने के समय कर देता है , जो की था " अधजल गगरी, छलकत जाए "
और दूसरा मुहावरा उसने आख़री दिन के लिए रख रखा था, जिस दिन वो यहां से जाएगा उस दिन उस मुहावरें का अर्थ अपने दादा से जानेगा
"अच्छा तो आपको इस मुहावरें का अर्थ जानना है, अर्थ तो मैं बता दूंगा, लेकिन मेरे पास अब कोई कहानी नही है, इस मुहावरें से मिलती झूलती, इसलिए तुम अपनी मम्मी, दादी और या फिर अपने पापा से कहो कहानी बताने को " दीन दयाल जी ने कहा
मानव ने सवालिया नज़रो से अपने मम्मी, पापा और दादी की तरफ देखा
आशीष ने राधिका की तरफ देखा और बोला " राधिका तुम्हे कुछ याद आया, अपने कॉलेज के दिनों से "
"क्या, मुझे कुछ याद नही " राधिका ने कहा
"क्या तुम्हे वो लड़का अभिनव याद है? जो अपने साथ पढता था " आशीष ने कहा
"अरे हाँ, उसे भूल सकते है भला, बहुत अच्छे से याद है, लेकिन इस समय आपको उसकी याद कैसे आ गयी " राधिका ने पूछा
"क्यूँ उसकी कहानी इस मुहावरें से नही मिलती थी क्या?" आशीष ने कहा
"सही कहा आपने, उसके ऊपर तो ये मुहावरा पूरी तरह से चरितार्थ होता था," राधिका ने कहा
"कौन था? किसकी बात चल रही है, कुछ बताओ जरा हमें भी, खुद से ही बाते किए जा रहे हो " सुष्मा जी ने कहा
"माफ करना माँ, अभी बताते है " आशीष ने कहा
"पहले जरा इसका अर्थ तो समझने दो, मानव को उसके बात बता देना " दीन दयाल जी ने कहा
"ये सही रहेगा, आप पहले अर्थ बता दीजिये उसके बाद ही इस मुहावरें को समझने में आसानी होगी " आशीष ने कहा
तो आओ पहले इस मुहावरें का अर्थ जानते है,बेटा इस मुहावरें से तातपर्य ये है, कि जिस प्रकार आधी जल से भरी गगरी छलकती ही रहती है, उसी प्रकार कुछ अज्ञानी लोग जिनके पास ज्ञान की कमी होती है वही स्वयं को पूर्ण ज्ञानी होने का दिखावा करते है , वही लोग अक्सर अपने ज्ञान की शेखी बघारते है
ज्ञानी व्यक्ति तो हमेशा शांत रहता है, और जरूरत पड़ने पर ही अपने ज्ञान से दुनिया को चौका देता है, दीन दयाल जी ने कहा
चलो अब मैं तुम्हे इसे कहानी के माध्यम से समझाता हूँ, क्यूंकि हमारे साथ भी एक ऐसा ही व्यक्ति पढता था, जो हर समय अपने आधे अधूरे ज्ञान की शेकी बघारता रहता था
तो ये कहानी है हमारे साथ पढ़ने वाले, एक मेडिकल छात्र अभिनव की, उसके पास इतना ज्ञान तो नही था जितनी वो शेखी बघारता था, और बघारता भी क्यूँ नही उसकी माँ और पिता दोनों डॉक्टर जो थे
माता पिता के डॉक्टर होने की वजह से वो खुद को आधा डॉक्टर समझता था, अपने आधे अधूरे ज्ञान से वो बहुत सारे कॉलेज स्टूडेंट का आकर्षण बना फिरता था
अध्यापक भी जो कुछ पढ़ाते तो, दिल से नही पढता उसे लगता कि उसे सब आता है, उसने अपने माता पिता से सीखा है
फिर एक दिन जब ह्यूमन अनटॉमी की क्लास चल रही थी, जिसमे बहुत कुछ बताया जा रहा था, जिसे हम सब के लिए सुनना बहुत ज़रूरी था, क्यूंकि दो दिन बाद हमारा एक प्रैक्टिकल था, जिसमे हमें ऐसा ही एक ह्यूमन अनाटॉमी दिया जाता और हमारा प्रैक्टिकल होता, एक एक करके
हम सब तो ध्यान से सुन और समझ रहे थे, लेकिन वो यही कह कर शेखी बघार रहा था, की उसे सब आता है, उसने अपने माता पिता से सीख लिया है
आखिर कार दो दिन बाद बाकी बच्चें तो पास हो गए वही फेल हो गया, क्यूंकि उसने कुछ सीखा ही नही था और जो उसे आता था वो आधा अधूरा था, उस दिन सब ने उसकी हसीं बनायीं और कहा " अधजल गगरी छलकत जाए " मुहावरा आज तुम्हारे ऊपर चरितार्थ हो गया, अब आगे से ध्यान लगा कर पढ़ना और अपने ज्ञान की शेखी मत बघारना, वरना फिर फेल हो जाओगे, खेर आदत वाले की आदत कहा जाती है, कुछ दिन बाद वो फिर से वही बन गया जो पहले था, अपने ज्ञान की शेखी बघारने वाला
अब समझ आया न इस मुहावरें का अर्थ, तुम कभी इस तरह मत करना, अपना ज्ञान दुसरे में बाटना तो जरूर लेकिन कभी उसकी शेखी मत बघारना जहाँ तक हो सके हर चीज को सीखने की कोशिश करना चाहे वो तुम्हे पहले से आती ही क्यूँ न हो " आशीष ने कहा
मानव को समझ आ गया था इस मुहावरें का भी अर्थ, अब बस उसकी कॉपी में एक आखिरी मुहावरा और बचा था जिसे वो कुछ दिन बाद पूछेगा
मुहावरों की दुनिया हेतु
Varsha_Upadhyay
16-Feb-2023 08:41 PM
बहुत खूब
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सीताराम साहू 'निर्मल'
16-Feb-2023 07:04 PM
Nice 👍🏼
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Radhika
15-Feb-2023 02:41 PM
Nice
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